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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ( ISRO ) का इतिहास

 

 

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ( Indian Space Research Organisation, संक्षेप में ‘इसरो’) इंडिया का राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान है जिसका मुख्यालय कर्नाटक प्रान्त की राजधानी बंगलुरू में है। संस्थान में लगभग 17,000 कर्मचारी एवं वैज्ञानिक कार्यरत हैं। संस्थान का मुख्य कार्य भारत के लिये अंतरिक्ष संबधी तकनीक उपलब्ध करवाना है। अन्तरिक्ष कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्यों में उपग्रहों, प्रमोचक यानों, परिज्ञापी राकेटों और भू-प्रणालियों का विकास शामिल है।

स्‍थापना

इसरो की स्‍थापना 15 अगस्त 1969 में की गई। भारत सरकार द्वारा 1972 में ‘अंतरिक्ष आयोग’ और ‘अंतरिक्ष विभाग’ के गठन से अंतरिक्ष शोध गतिविधियों को अतिरिक्‍त गति प्राप्‍त हुई। ‘इसरो’ को अंतरिक्ष विभाग के नियंत्रण में रखा गया। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के इतिहास में 70 का दशक प्रयोगात्‍मक युग था जिस दौरान आर्यभट्ट‘, ‘भास्‍कर‘, ‘रोहिणीतथा एप्पल जैसे प्रयोगात्‍मक उपग्रह कार्यक्रम चलाए गए। इन कार्यक्रमों की सफलता के बाद 80 का दशक संचालनात्‍मक युग बना जबकि ‘INSET’ तथा ‘IRS’ जैसे उपग्रह कार्यक्रम शुरू हुए। आज INSET तथा IRS इसरो के प्रमुख कार्यक्रम हैं। अंतरिक्ष यान के स्‍वदेश में ही प्रक्षेपण के लिए भारत का मज़बूत प्रक्षेपण यान कार्यक्रम है। यह अब इतना परिपक्‍व हो गया है कि प्रक्षेपण की सेवाएं अन्‍य देशों को भी उपलब्‍ध कराता है। इसरो की व्‍यावसायिक शाखा एंट्रिक्‍स, भारतीय अंतरिक्ष सेवाओं का विपणन विश्‍व भर में करती है। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की ख़ास विशेषता अंतरिक्ष में जाने वाले अन्‍य देशों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और विकासशील देशों के साथ प्रभावी सहयोग है।

उद्देश्य

  • इसरो का उद्देश्य है, विभिन्न राष्ट्रीय कार्यों के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और उसके उपयोगों का विकास।
  • इसरो ने दो प्रमुख अंतरिक्ष प्रणालियाँ स्थापित की हैं-
  1. संचार, दूरदर्शन प्रसारण और मौसम विज्ञानीय सेवाओं के लिए इन्सैट
  2. और संसाधन मॉनीटरन तथा प्रबंधन के लिए भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह (आईआरएस)।
  • इसरो ने इन्सैट और आईआरएस उपग्रहों को अपेक्षित कक्षा में स्थापित करने के लिए PSLV और GSLV, दो उपग्रह प्रमोचन यान विकसित किए हैं।
  • तदनुसार, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने दो प्रमुख उपग्रह प्रणालियाँ, यथा संचार सेवाओं के लिए भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह (इन्सैट) और प्राकृतिक संपदा प्रबंधन के लिए भारतीय सुदूर संवेदन (आईआरएस) का, साथ ही, आईआरएस प्रकार के उपग्रहों के प्रमोचन के लिए ध्रुवीय उपग्रहप्रमोचन यान (पीएसएलवी) और इन्सैट प्रकार के उपग्रहों के प्रमोचन के लिए भूस्थिर उपग्रह प्रमोचन यान (जीएसएलवी) का सफलतापूर्वक प्रचालनीकरण किया है।
  • महत्त्वपूर्ण प्रायोगिक परीक्षण

साईट

उपग्रह शैक्षणिक दूरदर्शन परीक्षण (साईट) एक मास कम्युनिकेशन या जन संचार परीक्षण था। इसके अंतर्गत देश के छह राज्यों के 2500 गांवों में अमरीकी उपग्रह ए टी एस-6 के इस्तेमाल से शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवार नियोजन आदि विषयों पर ग्रामीण लोगों को टेलीविजन कार्यक्रमों के माध्यम से जागरुक बनाया गया। यह परीक्षण 1 जुलाई 1975 से 31 जुलाई 1976 तक चला।

स्टेप परीक्षण

1977-79 में उपग्रह दूरसंचार परीक्षण परियोजना के दौरान फ़्रांस और जर्मनी के उपग्रह सिम्फोनी का प्रयोग किया गया। इसके माध्यम से संचार के क्षेत्र के कई महत्त्वपूर्ण परीक्षण पूरे किए गए। स्टेप परीक्षण ने घरेलू दूरसंचार के लिए एक भू स्थिर उपग्रह तंत्र के प्रचालन का मौक़ा दिया। इससे भू इन्फ्रास्ट्रक्चर के डिजाइन में मदद मिली।

एप्पल

 एप्पल उपग्रह

इसका पूरा नाम एरियन पैसेंजर पेलोड एक्सपेरीमेंट था। यह भारत में निर्मित पहला संचार उपग्रह था। यह प्रायोगिक संचार उपग्रह था, जिसमें केवल सी-बैंड ट्रांसपांडर थे। इसकी लॉन्चिंग 19 जून 1981 को यूरोपीय अंतरिक्ष संस्था के एरियन राकेट से की गई। यह एक बेलनाकार उपग्रह था। इसका वजन 350 किलोग्राम था। इस उपग्रह के इस्तेमाल से टेलीविजन कार्यक्रमों के प्रेषण और रेडियो नेटवर्किंग जैसे संचार परीक्षण किए गए।

 

आर्यभट्ट उपग्रह

भारत का पहला उपग्रह था। इसका नामकरण भारत के प्राचीन गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर किया गया। इसे 19 अप्रैल 1975 को रूस के लॉन्चिंग स्टेशन कपूस्टिन यार से लॉन्च किया गया। इस उपग्रह का निर्माण एक्स रे खगोलिकी वायुगतिकी और सौर भौतिकी पर परीक्षण करने के लिए किया गया था।

 

भास्कर उपग्रह

भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के तहत भास्कर-1 और भास्कर-2 का निर्माण किया गया। ये देश के पहले निम्न भू कक्षा प्रेक्षण उपग्रह थे। दोनों उपग्रहों को रूस के लॉन्चिंग स्टेशन कपूस्टिन यार से छोड़ा गया। इन्हें क्रमश: 7 जून 1979 और  20 नवंबर 1981 को छोड़ा गया था। दोनों उपग्रहों ने समुद्र विज्ञान, जल विज्ञान आदि से जुड़े कई आंकड़े इकट्ठे किए।

 

 रोहिणी उपग्रह

यह एक उपग्रह शृंखला का नाम है। इसकी लॉन्चिंग इसरो ने ही की थी। रोहिणी प्रथम का इस्तेमाल लॉन्चिंग यान एसएलवी-3 के निष्पादन के मापन के लिए किया गया था। रोहिणी-2 और रोहिणी-3 उपग्रहों में लैंड मार्क संवेदक नीतभार लगाए गए थे।

इसरो के प्रमुख केंद्र

  • जोधपुर-पश्चिमी आरआरएसएससी
  • उदयपुर-सौर वेधशाला
  • भोपाल-इनसैट मुख्य नियंत्रण सुविधा
  • अहमदाबाद-अंतरिक्ष उपयोग केंद्र, भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, विकास और शैक्षिक संचार यूनिट
  • बैंगलोर-अंतरिक्ष आयोग, अंतरिक्ष विभाग, इसरो मुख्यालय, इनसेट कार्यक्रम कार्यालय, सिविल इंजीनियरिंग प्रभाग, अंतरिक्ष कारपोरेशन, इसरो उपग्रह केंद्र, द्रव नोदन प्रणाली केंद्र, इस्टैरक, दक्षिणी आरआरएसएससी, एनएनआरएमएस सचिवालय
  • हासन-इनसैट मुख्य नियंत्रण सुविधा
  • अलुवा- अमोनियम प्रक्लोरेट प्रायोगिक संयंत्र
  • तिरुवनंतपुरम-विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, द्रव नोदन प्रणाली केंद्र, इसरो जड़त्वीय प्रणाली केंद्र
  • देहरादून-भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान, उत्तरी आरआरएसएससी
  • नई दिल्ली-अंतरिक्ष विभाग शाखा सचिवालय, इसरो शाखा कार्यालय, दिल्ली पृथ्वी स्टेशन
  • लखनऊ-इस्ट्रैक भू-केंद्र
  • खड़गपुर-पूर्वी आरआरएसएससी
  • नागपुर-मध्य आरआरएसएससी
  • हैदराबाद-राष्ट्रीय सुदूर संवेदन एजेंसी
  • तिरुपति-एनएमएसटी रडार सुविधा
  • श्रीहरिकोटा-सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, शार केंद्र
  • महेंद्रगिरि- द्रव नोदन जांच सुविधा केंद्र

भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रणेता

प्रमुख उपलब्‍धियाँ

  • वर्ष 2005-06 में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की सबसे प्रमुख उपलब्‍धि ‘पीएसएलवीसी 6’ का सफल प्रक्षेपण रही है।
  • 5 मई,2005 को PSLV (पीएसएलवी-एफसी 6) की नौवीं उड़ान ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) से सफलतापूर्वक दो उपग्रहों – 1560 कि.ग्रा. के कार्टोस्‍टार-1 तथा 42 कि.ग्रा. के हेमसेट को पूर्व-निर्धारित पोलर सन सिन्‍क्रोनन आर्बिट (एसएसओ) में पहुंचाया। लगातार सातवीं प्रक्षेपण सफलता के बाद पीएसएलवी-सी 6 की सफलता ने पीएसएलवी की विश्‍वसनीयता को आगे बढ़ाया तथा 600 कि.मी. ऊंचे पोलर एसएसओ में 1600 कि.ग्रा. भार तक के नीतभार को रखने की क्षमता को दर्शाया है।
  • 22 दिसंबर,2005 को इन्सेट-4ए का सफल प्रक्षेपण, जो कि भारत द्वारा अब तक बनाए गए सभी उपग्रहों में सबसे भारी तथा शक्‍तिशाली है, वर्ष 2005-06 की अन्‍य बड़ी उपलब्‍धि थी। इन्सेट-4ए डाररेक्‍ट-टू-होम (डीटीएच) टेलीविजन प्रसारण सेवाएं प्रदान करने में सक्षम है।
  • इसके अतिरिक्‍त, नौ ग्रामीण संसाधन केंद्रों (वीआरसीज) के दूसरे समूह की स्‍थापना करना अंतरिक्ष विभाग की वर्ष के दौरान महत्‍वपूर्ण मौजूदा पहल है। वीआरसी की धारणा ग्रामीण समुदायों की बदलती तथा महत्‍वपूर्ण आवश्‍यकताओं को पूरा करने के लिए अंतरिक्ष व्‍यवस्‍थाओं तथा अन्‍य आईटी औजारों से निकलने वाली विभिन्‍न प्रकार की जानकारी प्रदान करने के लिए संचार साधनों तथा भूमि अवलोकन उपग्रहों की क्षमताओं को संघटित करती है।

NEWS

15 फ़रवरी, बुधवार 2017

इसरो ने एक साथ रिकार्ड 104 सैटेलाइट लॉन्च करके इतिहास रचा

अंतरिक्ष में भारत ने 15 फ़रवरी2017 बुधवार को एक बहुत बड़ी कामयाबी हासिल की है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रक्षेपणयान पीएसएलवी ने श्रीहरिकोटा स्थित अंतरिक्ष केन्द्र से एक एकल मिशन में रिकार्ड 104 उपग्रहों का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया। यहां से क़रीब 125 किलोमीटर दूर श्रीहरिकोटा से एक ही प्रक्षेपास्त्र के जरिये रिकॉर्ड 104 उपग्रहों का प्रक्षेपण सफलतापूर्वक किया गया। भारत ने एक रॉकेट से 104 उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजकर इस तरह का इतिहास रचने वाला पहला देश बन गया है। प्रक्षेपण के कुछ देर बाद पीएसएलवी-सी37 ने भारत के काटरेसैट-2 श्रृंखला के पृथ्वी पर्यवेक्षण उपग्रह और दो अन्य उपग्रहों तथा 103 नैनो उपग्रहों को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित कर दिया। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सफल अभियान को लेकर इसरो को बधाई दी है। उन्‍होंने कहा कि पूरे देश के लिए यह गौरव का क्षण है। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के प्रमुख एएस किरण कुमार ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 104 उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण पर इसरो दल को बधाई दी। प्रधानमंत्री ने एक ही रॉकेट के जरिए 104 उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण के लिए वैज्ञानिकों की सराहना करते हुए कहा कि इस अहम उपलब्धि ने भारत को गौरवांवित किया है।

3 स्वदेशी एवं 101 विदेशी उपग्रह

प्रक्षेपण के बारे में महत्वपूर्ण बात यह है कि इतनी बड़ी संख्या में रॉकेट से उपग्रहों का प्रक्षेपण किया गया। रूसी अंतरिक्ष एजेंसी की ओर से एक बार में 37 उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण की तुलना में भारत एक बार में 104 उपग्रह प्रक्षेपित करने में सफलता हासिल कर इतिहास रचने वाला पहला देश बन गया है। भारत ने इससे पहले जून 2015 में एक बार में 23 उपग्रहों को प्रक्षेपण किया था। यह उसका दूसरा सफल प्रयास है। पीएसएलवी पहले 714 किलोग्राम वजनी काटरेसेट-2 श्रृंखला के उपग्रह का पृथ्वी पर निगरानी के लिए प्रक्षेपण करेगा और उसके बाद 103 सहयोगी उपग्रहों को पृथ्वी से करीब 520 किलोमीटर दूर ध्रुवीय सन सिंक्रोनस ऑर्बिट में प्रविष्ट कराएगा जिनका अंतरिक्ष में कुल वजन 664 किलोग्राम है। इन 104 उपग्रहों में भारत के तीन और विदेशों के 101 सैटेलाइट शामिल है। इसरो के वैज्ञानिकों ने एक्सएल वैरियंट का इस्तेमाल किया है जो सबसे शक्तिशाली रॉकेट है और इसका इस्तेमाल महत्वाकांक्षी चंद्रयान में और मंगल मिशन में किया जा चुका है। इनमें 96 उपग्रह USA के, पांच क्रमश: इसरो के अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों- इजरायल, कजाकिस्तान, नीदरलैंड, स्विट्जरलैंड, संयुक्त अरब अमीरात के हैं।

 

इसरो ने अंतरिक्ष में रचा इतिहास, लॉन्च किए 20 उपग्रह

22 जून, 2016, बुधवार

भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने 22 जून2016 को एक साथ 20 उपग्रहों को उनकी कक्षाओं में स्थापित करके एक नया कीर्तिमान स्थापित किया। इससे पहले 2008 में उसने एक साथ 10 उपग्रह लॉन्च किए थे, जो उसका अब तक का रेकॉर्ड था। संख्या के अलावा जो एक और बात इस उपलब्धि को खास बनाती है, वह है मल्टी पॉइंट डिलिवरी। इससे पहले इसरो ने जब एकाधिक उपग्रह लॉन्च किए तो वे एक ही ऊंचाई पर छोड़े गए थे। यानी वे एक-दूसरे से पर्याप्त दूरी रखते हुए कमोबेश एक जैसी ही ऑरबिट में घूमते थे। यह पहला मौका है जब इसरो ने PSLV -C34 के जरिए उपग्रहों को अलग-अलग ऊंचाई पर छोड़ा है। जो 20 उपग्रह छोड़े गए हैं उनमें 17 कमर्शियल हैं।

17 सैटेलाइट विदेशी, तीन स्वदेशी

पीएसएलवी-C34 की लॉन्चिंग सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लॉन्च पैड से श्रीहरिकोटा में की गई। भारतीय समय के अनुसार पीएसएलवी C-34 की लॉन्चिंग 22 जून को सुबह 9 बजकर 26 मिनट पर की गई। पीएसएलवी सी-34 के 20 सैटेलाइटों में से 17 कमर्शियल सैटेलाइट हैं। यानी 17 सैटेलाइट दूसरे देशों के हैं जिन्हें भेजने के लिए इसरो ने उन देशों से फीस ली है। इसके अलावा दो सैटेलाइट देश के दो शिक्षा संस्थानों के हैं। इस लॉन्चिंग में एक सैटेलाइट कॉर्टोसैट 2 सीरीज का इसरो का अपना है। इन 20 उपग्रहों का कुल वज़न 1288 किलोग्राम था, लेकिन उनमें अकेले कार्टोसैट-2 सीरीज उपग्रह का वजन ही 727.5 किलोग्राम है। यह उपग्रह देश में हो रहे वानस्पतिक या भूगर्भीय बदलावों पर बारीकी से नज़र रख सकेगा। मिशन को खास बनाने वाली एक और अहम बात यह है कि बाकी दो सैटलाइट चेन्नई की सत्यभामा यूनिवर्सिटी और पुणे के कॉलेज ऑफ इंजिनियरिंग के छात्रों ने तैयार किए हैं।

सोमवार, 23 मई, 2016

भारत की अंतरिक्ष में बड़ी कामयाबी, लॉन्च किया स्वदेशी स्पेस शटल

भारतीय अंतरिक्ष शोध संस्थान (ISRO) सोमवार 23 मई2016 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर से पूरी तरह से भारत में बने स्पेस शटल RLV-TD को लॉन्च किया। इसे भारत का अपना खुद का स्पेस शटल है। अमेरिकी स्पेस शटल जैसा दिखने वाला ये शटल फिलहाल प्रयोग की स्थिति में है और अपने असली साइज से 6 गुना छोटा है। विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (VSSC) के डायरेक्टर के सिवन के अनुसार, ‘RLV-TD का मुख्य लक्ष्य पृथ्वी की कक्षा में उपग्रह पहुंचाना और फिर वायुमंडल में दोबारा प्रवेश करना है। शटल को एक ठोस रॉकेट मोटर से ले जाया जाएगा। नौ मीटर लंबे रॉकेट का वजन 11 टन है।’ इस परीक्षण के बाद इसको पूरी तरह से तैयार होने में करीब दस वर्ष तक का समय लग जाएगा। ISRO के वैज्ञानिकों के अनुसार, यह लागत कम करने, विश्वसनीयता कायम रखने और मांग के अनुरूप अंतरिक्ष में पहुंच बनाने के लिए एक साझा हल है। यह पहली बार है, जब इसरो ने पंखों से युक्त किसी यान का प्रक्षेपण किया है। यह यान बंगाल की खाड़ी में तट से लगभग 500 किलोमीटर की दूरी पर उतरा। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी ट्वीट कर वैज्ञानिकों को इसके लिए बधाई दी। प्रधानमंत्री ने कहा भारत के पहले स्वदेशी अंतरिक्ष शटल RLV-टीडी की लॉन्चिंग हमारे वैज्ञानिकों के मेहनती प्रयासों का परिणाम है। गतिशीलता और समर्पण के साथ जो हमारे वैज्ञानिकों और इसरो ने पिछले कुछ सालों में काम किया है, वह असाधारण और बहुत ही प्रेरणादायक है।

 

सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 का सफल प्रक्षेपण

18 दिसम्बर, 2014, गुरुवार

‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (इसरो) ने अपने अब तक के सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी-एमके 3 को आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया है। इसरो ने इससे पहले 24 सितंबर2014 को मंगलयान को सफलतापूर्वक उसकी कक्षा में स्थापित किया था। जीएसएलवी-एमके3 में सी-25 इंजन लगाया गया है। इसकी ऊंचाई 43.43 मीटर है। इस यान के तीन स्तरों पर तीन तरह के ईंधन ठोसद्रव और क्रायोजनिक का इस्तेमाल किया गया है। जीएसएलवी-एमके3 रॉकेट के निर्माण पर कुल 140 करोड़ रुपये की लागत आई है। क्रू माड्यूल के निर्माण पर 15 करोड़ रुपये ख़र्च हुए हैं। इस सबसे भारी रॉकेट के प्रक्षेपण के साथ ही इसरो इंसान को अंतरिक्ष में ले जाने वाले 3.65 टन वजनी क्रू माड्यूल का परीक्षण भी कर रहा है। यह माड्यूल को रॉकेट में लगाया गया था। इसे पैराशूट के जरिए बंगाल की खाड़ी में सफलतापूर्वक उतारा गया है। इस परीक्षण की सफलता की जानकारी इसरो निदेशक के. राधाकृष्णन ने दी। इस मौके पर इसरो के पूर्व निदेशक डॉ. कस्तूरीरंगन भी मौज़ूद थे। जीएसएलवी-एमके 3 के प्रक्षेपण का उद्देश्य इनसेट-4 जैसे भारी संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण में भारत को पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाना है। इस सफलता के बाद भारत इनसैट-4 श्रेणी के उपग्रह प्रक्षेपित करने में सक्षम हो गया है। इनसैट-4 श्रेणी के उपग्रह का वजन 4500-5000 किलोग्राम तक होता है। इस श्रेणी के उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए भारत अब तक दूसरे देशों पर निर्भर था। इससे भारत अरबों डॉलर के व्यावसायिक बाज़ार में भी अपनी दावेदारी मज़बूत करेगा और दूसरे देशों के इनसैट-4 श्रेणी के उपग्रह अंतरिक्ष में भेज पाएगा।

मंगलयान सफल, भारत ने इतिहास रचा

बुधवार ,24 सितम्बर, 2014

भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी, इसरो का उपग्रह मंगलयान मंगल ग्रह की अंडाकार कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश कर चुका है। ये भारत के अंतरिक्ष शोध में एक कालजयी घटना है। इस अभियान की कामयाबी से भारत ऐसा देश बन गया है जिसने एक ही प्रयास में अपना अभियान पूरा कर लिया। भारत ने लिक्विड मोटर इंजन की तकनीक से मंगलयान को मंगल की कक्षा में स्थापित किया। आमतौर पर चांद तक पहुंचने के लिए इसी तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन इतने लंबे मिशन पर भारत से पहले किसी ने लिक्विड मोटर इंजन का इस्तेमाल नहीं किया था। एक ओर मंगल मिशन इतिहास के पन्नों पर स्वयं को सुनहरे अक्षरों में दर्ज करा रहा था वहीं दूसरी ओर यहां स्थित भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के कमांड केंद्र में अंतिम पल बेहद व्याकुलता भरे थे। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के साथ मंगल मिशन की सफलता के साक्षी बने भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, “विषमताएं हमारे साथ रहीं और मंगल के 51 मिशनों में से 21 मिशन ही सफल हुए हैं, लेकिन हम सफल रहे।” खुशी से फूले नहीं समा रहे प्रधानमंत्री ने इसरो के अध्यक्ष के. राधाकृष्णन की पीठ थपथपाई और अंतरिक्ष की यह अहम उपलब्धि हासिल कर इतिहास रचने के लिए भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को बधाई दी। भारत के मंगल अभियान का निर्णायक चरण 24 सितंबर को सुबह यान को धीमा करने के साथ ही शुरू हो गया था। इस मिशन की सफलता उन 24 मिनटों पर निर्भर थी, जिस दौरान यान में मौजूद इंजन को चालू किया गया। मंगलयान की गति धीमी करनी थी ताकि ये मंगल की कक्षा में गुरुत्वाकर्षण से खुद-बखुद खिंचा चला जाए और वहां स्थापित हो जाए। इस अंतरिक्ष यान का प्रक्षेपण 5 नवंबर2013 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से स्वदेश निर्मित PSLV रॉकेट से किया गया था। यह 1 दिसंबर2013 को पृथ्वी के गुरूत्वाकषर्ण से बाहर निकल गया था। अमेरिकी अंतरिक्ष संस्थान ‘नासा’ का मंगलयान ‘मावेन’ 22 सितंबर को मंगल की कक्षा में प्रविष्ट हुआ था। भारत के एम.ओ.एम. की कुल लागत मावेन की लागत का मात्र दसवां हिस्सा है। भारत ने इस मिशन पर क़रीब 450 करोड़ रुपए खर्च किए हैं, जो बाकी देशों के अभियानों की तुलना में सबसे ज़्यादा क़िफ़ायती है।

भारत का मंगलयान पृथ्वी की कक्षा में पहुंचा

5 नवम्बर, 2013, मंगलवार

भारत ने अपने पहले मंगल ग्रह परिक्रमा अभियान (एमओएम) के लिए ध्रुवीय रॉकेट को 5 नवम्बर2013 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित करके इतिहास रच दिया। चंद्रमा पर भेजे यान के बाद यह भारत का सबसे महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष अभियान है। पूर्वी तट के क़रीब श्रीहरिकोटा द्वीप से रॉकेट ने सीधे आकाश की ओर उड़ान भरी और 44 मिनट बाद रॉकेट से अलग हो कर उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में आ गया। यात्रा का पहला चरण सफल रहा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने इस कार्यक्रम के सीधे प्रसारण का भी इंतजाम किया था जिसके जरिए भारत के इस ऐतिहासिक पल को लाखों लोगों ने टीवी पर देखा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रक्षेपण यान पीएसएलवी सी25 का यह ऐतिहासिक प्रक्षेपण अपराह्न दो बजकर 38 मिनट पर चेन्नई से क़रीब 100 किलोमीटर दूर यहां स्पेसपोर्ट से किया गया। इसरो के निदेशक डॉ. राधाकृष्‍णन ने कहा, “मुझे यह बताते हुए बेहद खुशी हो रही है कि यह पीएसएलवी की 25वीं उड़ान है। मैं समस्त इसरो परिवार को बधाई देता हूँ, जिन्होंने बेहद कम वक़्त में यह मुमकिन कर दिखाया।” लगभग 450 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट के तहत भारत ने मंगल ग्रह के लिए अपना पहला यान श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपित किया। मंगलवार को इसे छोड़े जाने के बाद से इसका नियंत्रण बैंगलोर में इसरो के वैज्ञानिकों ने अपने हाथों में ले लिया है। इस मंगलयान को पृथ्वी की कक्षा छोड़ने से पहले पांच चक्कर लगाने हैं, जिसके बाद यह 1 दिसंबर को सूर्य की परिधि में प्रवेश कर जाएगा। वहां से लगभग नौ महीने बाद यह यान मंगल ग्रह तक की अपनी यात्रा पूरी कर पाएगा। श्रीहरिकोटा से मंगल मिशन की तस्वीरें देश के अंतरिक्ष अभियान के गौरवशाली इतिहास की कहानी बयां कर रही हैं। पीएसएलवी सी25 (PSLV C-25) ‘मार्स ऑर्बिटर’ नाम के उपग्रह को लेकर अंतरिक्ष के लिए रवाना हो गया है। इस कामयाबी के साथ ही भारत अंतरिक्ष में नई इबारत लिखने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है।

उद्देश्य

इसरो का मकसद है कि इस मिशन के ज़रिए दूसरे ग्रहों की पड़ताल की घरेलू तकनीक विकसित की जाए। मंगलयान के सितंबर 2014 तक मंगल ग्रह पर पहुंचने की उम्मीद है। इसके बाद पंद्रह किलो वज़न का एक ऑर्बिटर मंगल के वातावरण में लॉन्च होगा। ऑर्बिटर पर लगे सेंसर मंगल ग्रह की मिट्टी और खनिजों और वहां मौजूद गैसों की जांच करेंगे।

पीएसएलवी-17 का सफल प्रक्षेपण

शुक्रवार, 15 जुलाई, 2011

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने शुक्रवार, 15 जुलाई, 2011 को पीएसएलवी सी-17 के जरिए जीसैट-12 ए का श्रीहरिकोटा से सफल प्रक्षेपण किया। इसरो ने इसे भारतीय समयानुसार शाम 4.48 बजे प्रक्षेपित किया, जो अपने निर्धारित समय में धरती की कक्षा में स्थापित हो गया। जीसैट-12 संचार सेटेलाइट का वज़न 1410 किलोग्राम है और इसका जीवन काल आठ सालों का होगा। समाचार एजेंसी के मुताबिक इसरो के प्रकाशन और जनसम्पर्क निदेशक एस. सतीश ने पहले ही इस बात की संभावना जताई थी कि प्रक्षेपण में कोई समस्या नहीं आएगी। यह उपग्रह संचार के क्षेत्र में काफ़ी महत्त्वपूर्ण साबित होगा। इससे दूरस्थ शिक्षा, दूरस्थ चिकित्सा और ग्राम संसाधन केंद्र को उन्नत बनाया जा सकता है।

कुछ अन्य प्रश्न इसरो से सम्बंधित

इसरो का पूरा नाम क्या है?

इसरो का पूरा नाम है भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन।

 

भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का “संस्थापक जनक” किसे माना जाता है?

डॉ.विक्रम ए. साराभाई को भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रमों का संस्थापक जनक माना जाता है।

 

इसरो का गठन कब हुआ?

इसरो का गठन 15 अगस्त, 1969 को हुआ था।

 

अंतरिक्ष विभाग का गठन कब हुआ था?

अंतरिक्ष विभाग (अं.वि.) और अंतरिक्ष आयोग को सन् 1972 में स्‍थापित किया गया। 01 जून, 1972 में इसरो को अंतरिक्ष विभाग के अंदर शामिल किया गया।

 

इसरो का प्रमुख उद्देश्य क्या है?

इसरो का प्रमुख उद्देश्य अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का विकास तथा विभिन्न राष्ट्रीय आवश्यकताओं में उनका उपयोग करना है।

 

इन उद्देश्यों की पूर्ति कैसे की जाती है?

इसरो ने दो प्रमुख अंतरिक्ष प्रणालियों की स्थापना की है, संचार, दूरदर्शन प्रसारण तथा मौसम-विज्ञान सेवाओं के लिए इन्सैट, और संसाधन मॉनिटरन और प्रबंधन के लिए भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह (आईआरएस) प्रणाली। इसरो ने अभीष्ट कक्ष में इन्सैट और आईआरएस की स्थापना के लिए दो उपग्रह प्रमोचन यान, पीएसएलवी और जीएसएलवी विकसित किए हैं।

 

उपग्रह कहाँ बनाए जाते हैं?

उपग्रहों को इसरो उपग्रह केंद्र (आईजैक) में बनाया जाता है।

 

राकेट/प्रमोचन यान कहाँ बनाए जाते हैं?

राकेट/ प्रमोचन यान विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी), तिरुवनंतपुरम में बनाए जाते हैं।

 

राकेटों का प्रमोचन कहाँ से किया जाता है?

इसरो की प्रमोचन सुविधा एसडीएससी शार में स्थित है, जहाँ से प्रमोचन यानों और परिज्ञापीराकेटों का प्रमोचन किया जाता है। तिरुवनंतपुरम स्थित टर्ल्स से भी परिज्ञापीराकेटों का प्रमोचन किया जाता है।

 

भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रम का प्रारंभ कहाँ हुआ?

भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का प्रारंभ तिरुवनंतपुरम के निकट थुम्बाभूमध्यरेखीयराकेट प्रमोचन केंद्र (टर्ल्स) में हुआ

 

राकेट प्रमोचन केंद्र के रूप में थुम्बा का चुनाव क्यों किया गया?

पृथ्वी की भू-चुंबकीय भूमध्यरेखा थुम्बा से हो कर गुज़रती है।

 

परिज्ञापी राकेट क्या है?

परिज्ञापी का तात्पर्य, ऊपरी वायुमंडल के भौतिक प्राचलों के मूल्यांकन के लिए प्रयुक्त रोकेट है।

 

भारतीय परिज्ञापी राकेटों पर अक्षर ‘RH’ और अंक क्या सूचित करते हैं?

RH परिज्ञापी राकेट ‘रोहिणी’ का द्योतक है और अगले अंक राकेट के व्यास को सूचित करते हैं।

 

पहला राकेट कब प्रमोचित किया गया? यह राकेट कौन-सा था?

पहला रॉकेट, नैकी-अपाची, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका से प्राप्त किया गया था, जिसे 21 नवंबर, 1963 को प्रमोचित किया गया।

 

भारत ने स्वयं अपने राकेट कब से बनाने शुरू किया?

भारत का पहला स्वदेशी परिज्ञापी राकेट, आरएच-75, 20 नवंबर, 1967 में प्रमोचित किया गया।

वीएसएससी का विस्तार क्या है और यह कब गठित हुआ?

अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी केंद्र (एसएसटीसी) का पुनर्नामकरण के सम्मान में किया गया विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) के रूप में किया गया। डॉ. विक्रम साराभाई का 30 दिसंबर, 1971 को असामयिक निधन हो गया था।

इसरो के कितने केंद्र हैं?

देश भर में इसरो छह प्रमुख केंद्र तथा कई अन्य इकाइयाँ, एजेंसी, सुविधाएँ और प्रयोगशालाएँ स्थापित हैं।

ये केंद्र कहाँ पर स्थित हैं?

विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) तिरुवनंतपुरम में;इसरो उपग्रह केंद्र (आईएसएसी) बेंगलूर में;सतीशधवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी-शार) श्रीहरिकोटा में; द्रव नोदन प्रणाली केंद्र (एलपीएससी) तिरुवनंतपुरम, बेंगलूर और महेंद्रगिरी में, अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (सैक), अहमदाबाद में और राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (एनआरएससी), हैदराबाद में स्थित हैं।

इन केंद्रों के प्रमुख कार्य क्या हैं?

वीएसएससी, तिरुवनंतपुरम में प्रमोचन यान का निर्माण किया जाता है; आइजैक, बेंगलूर में उपग्रहों को अभिकल्पित और विकसित किया जाता है;एसडीएससी, श्रीहरिकोटा में उपग्रहों और प्रमोचन यानों का एकीकरण और प्रमोचन किया जाता है; एलपीएससी में निम्नतापीय चरण सहित द्रव चरणों का विकास किया जाता है, सैक, अहमदाबाद में संचार और सुदूर संवेदन उपग्रहों के लिए संवेदकों तथा अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग संवंधित का कार्य किए जाते हैं तथा; एनआरएससी, हैदराबाद द्वारा सुदूर संवेदन आँकड़ा अभिग्रहण, संसाधन और वितरण का कार्य सँभाला जाता है।

भारत का पहला प्रमोचन यान कौन था?

भारत का पहला प्रमोचन यान को नाम उपग्रह प्रमोचन यान-3 (एसएलवी-3) था।

इसका प्रमोचन कब हुआ?

एसएलवी-3 का प्रथम सफल प्रमोचन एसडीएससी, शार से 18 जुलाई, 1980 को संपन्न हुआ

भारत द्वारा विकसित अन्य प्रमोचन यान कौन से हैं?

एसएलवी-3 के अलावा, भारत ने संवर्धित उपग्रह प्रमोचन यान (एएसएलवी), ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन यान (पीएसएलवी) और भू-तुल्यकाली उपग्रह प्रमोचन यान (जीएसएलवी) का विकास किया।

उपग्रहों का मौटे तौर पर कैसे वर्गीकरण किया जाता है?

उपग्रहों को मोटे तौर पर दो वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है, यथा संचार उपग्रह और सुदूर संवेदन उपग्रह।

संचार उपग्रह क्या हैं?

संचार उपग्रह आम तौर पर संचार, दूरदर्शन प्रसारण, मौसम-विज्ञान, आपदा चेतावनी आदि की ज़रूरतों के लिए भू-तुल्यकाली कक्षा में कार्य करते हैं।

सुदूर संवेदन उपग्रह क्या है?

सुदूर संवेदन उपग्रह प्राकृतिक संसाधन मॉनिटरन और प्रबंधन के लिए अभिप्रेत है और यह सूर्य-तुल्यकाली ध्रुवीय कक्षा (एसएसपीओ) से परिचालित होता है।

एनएनआरएमएस क्या है?

एनएनआरएमएस राष्ट्रीय प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन प्रणाली के लिए परिवर्णी शब्द है। एनएनआरएमएस एकीकृत संसाधन प्रबंधन प्रणाली है जिसका लक्ष्य परंपरागत प्रौद्योगिकी के साथ सुदूर संवेदन आंकड़ों के प्रयोग द्वारा देश के प्राकृतिक संसाधनों का इष्टतम उपयोग तथा उपलब्ध संसाधनों का सुव्यवस्थित सूचीकरण करना है।

पहला भारतीय उपग्रह का नाम क्या था?

पहले भारतीय उपग्रह का नाम आर्यभट्ट था।

इसका प्रमोचन कहां से किया गया?

इसका प्रमोचन 19 अप्रैल, 1975 को पूर्व सोवियत संघ से किया गया।

भारतीय भूमि से भारत द्वारा प्रमोचित सर्वाधिक भारी उपग्रह कौन है?

दिनांक 2 सितंबर, 2007 को जीएसएलवी-एफ़04 द्वारा प्रमोचित 2130 कि.ग्रा. भार वाला उपग्रह इन्‍सैट-4सी.आर. भारत द्वारा प्रमोचित सर्वाधिक भारी उपग्रह है।

अब तक कितने प्रमोचक राकेटों के प्रमोचन संपन्न हुए हैं?

अब तक (मार्च 2013) 38 प्रमोचक राकेट मशिन संपन्‍न हुए हैं।

भारत द्वारा कितने उपग्रह प्रमोचित किए गए?

अब तक (मार्च 2013) 68 + 35 (विदेशी) उपग्रह कक्षा में स्थापित किए गए।

भारत का पहला प्रचालित प्रमोचक राकेट कौन-सा है?

पीएसएलवी भारत का पहला प्रचालित प्रमोचक राकेट है। अब तक इसकी तीन विकासात्मक उड़ानें और आठ कार्यकारी उड़ानें संपन्न हुई हैं।

चंद्रयान-1 क्या है?

चंद्रयान-1 अंतरिक्ष-यान द्वारा-चंद्रमा का वैज्ञानिक अन्वेषण है। भारतीय भाषाओं (संस्कृत और हिन्दी) में- चंद्रयान का तात्पर्य है “चंद्र अर्थात चंद्रमा, यान अर्थात वाहन” अर्थात, चंद्रमा अंतरिक्ष-यान। चंद्रयान-1 प्रथम भारतीय ग्रहीय विज्ञान और अन्वेषण मिशन है।

चंद्रयान-1 कब और कहाँ से प्रमोचित किया गया?

चंद्रयान-1, श्रीहरिकोटा (शार), भारत में स्थित सतीशधवन अंतरिक्ष केंद्र से 22 अक्तूबर, 2008 को प्रमोचित किया गया।

चंद्रयान-1 कब तक प्रचालन में रहा?

चंद्रयान-1 28 अगस्‍त 2009 तक 312 दिनों के लिए प्रचालन में रहा।

चंद्रयान के वैज्ञानिक उद्देश्य क्या हैं?

चंद्रयान-1 मिशन का उद्देश्य दृश्य, निकट अवरक्त, न्यून ऊर्जा एक्स-किरण और उच्च ऊर्जा एक्स-किरण क्षेत्रों में चंद्रमा की सतह का उच्च विभेदन सुदूर संवेदन करना है। इसके विशेष वैज्ञानिक लक्ष्य हैं : चंद्रमा के निकटस्थ और दूरस्थ (5-10 मी. उच्च स्थानिक और तुंगता विभेदन सहित) दोनों ओर के त्रि-आयामी एटलस तैयार करना। मैग्नीशियम, एल्यूमीनियम, सिलिकॉन, कैल्शियम, आइरन तथा टाइटेनियम जैसे खनिजों और रासायनिक तत्वों तथा उच्च परमाणु संख्या के रेडॉन, यूरेनियम और थोरियम जैसे उच्च स्थानिक विभेदन वाले तत्वों का चंद्रमा की संपूर्ण सतह पर उपस्थिति का रासायनिक और खनिजीय मानचित्रण करना। हम समकालिक प्रकाशीय भूवैज्ञानिक और रासायनिक मानचित्रण से विभिन्न भूवैज्ञानिक इकाइयों की पहचान और चंद्रमा के उद्भव व प्रारंभिक विकास के इतिहास से संबंधित परिकल्पना की जांच करने में समर्थ होंगे जिससे चंद्रमा की सतह की प्रकृति को समझने करने में मदद मिलेगी।

चंद्रयान-1 पर कौन से वैज्ञानिक उपकरण लगे हैं?

अंतरिक्षयान चंद्रयान-1 पर ग्यारह वैज्ञानिक उपकरण लगे हैं। इनमें पाँच भारतीय और छह विदेशी नामतः, ईएसए के तीन, नासा के दो तथा बल्गेरियाई विज्ञान अकादमी का एक वैज्ञानिक उपकरण शामिल है। इनका चयन इसरो के अवसर की घोषणा (एओ) के माध्यम से किया गया। दो ईएसए उपकरणों में भारतीय सहयोग शामिल है।

चंद्रमा का तापमान कितना है?

चंद्रमा पर तापमान चरम सीमाओं पर पहुँच जाता है – सूरज की रोशनी में प्रकाशित चंद्रमा का पहलू लगभग 130 ºसें तक झुलसाने जितना गरम हो जाता है, और रात में यही पहलू -180 ºसें. पर अत्यधिक ठंडा हो जाता है।

क्‍या चंद्रमा पर जीवन है?

अभी तक किसी भी चंद्र मिशन ने चंद्रमा पर जीवन की उपस्थिति का कोई संकेत नहीं दिया है।

हम चंद्रमा का केवल एक पहलू ही क्यों देख पाते हैं?

परिक्रमा करते हुए चंद्रमा पृथ्वी को हमेशा अपना एक पहलू ही दर्शाता है। यह इसलिए है कि पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण ने चंद्रमा के नियमित प्रचक्रण की गति इतनी कम कर दी कि वह उसके पृथ्वी की परिक्रमा के समय के बराबर हो गया। अतः चंद्रमा को पृथ्वी के चारों ओर घूमने में उतना ही समय लगता है जितना कि उसे अपने अक्ष पर घूमने में लगता है।

चंद्रयान-1 मिशन को साकार करने का कुल बजट कितना है?

प्रस्तावित भारतीय चंद्रमा मिशन चंद्रयान-1 को साकार करने के लिए बजटीय अनुमान 386 करोड़ रुपए (लगभग $76मिलियन) है। इसमें नीतभार विकास के लिए 53 करोड़ रुपए (लगभग $11 मिलियन), अंतरिक्षयान बस के लिए 83.00 करोड़ रुपए (लगभग $17 मिलियन), गहन अंतरिक्ष नेटवर्क की स्थापना के लिए 100 करोड़ रुपए (($20 मिलियन), पीएसएलवीप्रमोचन यान के लिए 100 करोड़ रुपए (($20 मिलियन) और वैज्ञानिक डेटा केंद्र के लिए 50 करोड़ रुपए ($10 मिलियन), बाह्य नेटवर्क समर्थन और कार्यक्रम प्रबंधन व्यय शामिल हैं।

एंट्रिक्स क्या है?

एंट्रिक्स इसरो का वाणिज्यिक स्कंध है। यह विश्व भर में भारतीय अंतरिक्ष उत्पाद और सेवा क्षमताओं के विपणन हेतु एकल खिड़की एजेंसी है।

मनीष नैथानी

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