उत्तराखंड न्यूज़ताज़ा ख़बरें

शरद पूर्णिमा पर दूनवासियों ने उत्साह और उल्लास के साथ व्रत रखकर माता लक्ष्मी, शिव-पार्वती और कार्तिकेय की पूजा की।

शाम को खीर बनाकर रातभर चांद की रोशनी रखी गई। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है। इसीलिए इस दिन खीर बनाकर रातभर चंद्रमा की रोशनी में रखने का विधान है। पंडित विष्णु प्रसाद भट्ट के मुताबिक इस खीर को ग्रहण करने से कई रोगों से मुक्ति मिलती है।

हिंदू धर्म में पूर्णिमा का विशेष महत्व माना गया है। इन सभी में अश्विन मास की पूर्णिमा को सर्वश्रेष्ठ माना गया है, इसे ही शरद पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को जागरीव्रत, रास पूर्णिमा, बड़ी पूर्णिमा आदि नाम से भी जाना जाता है। शुक्रवार को दून में भी शरद पूर्णिमा उल्लास के साथ मनाई गई। श्रद्धालुओं ने शाम को छह बजकर 34 मिनट पर चंद्रोदय के साथ उपवास शुरू किया, जो आज सुबह स्नान और दान के साथ खोला। रात में व्रतियों ने खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखी और सुबह पूरे परिवार ने उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया। इसके बाद दीपक जलाकर माता लक्ष्मी की पूजा की। कई घरों में रात्रि जागरण भी किया गया। इस दौरान भजन-कीर्तन होते रहे।

उत्तराखंड विद्वत सभा के प्रवक्ता आचार्य विजेंद्र प्रसाद ममगाईं ने बताया कि शरद पूर्णिमा का व्रत प्रदोष और निशीथ दोनों पूर्णिमा को लिया जाता है। अगर पहले दिन निशीथ व्यापिनी और दूसरे दिन प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा हो तो पहले दिन का व्रत फलदायी माना जाता है। 30 अक्टूबर को प्रदोष व निशीथ व्यापिनी पूर्णिमा है। शास्त्रों के अनुसार पूर्णिमा शुक्रवार को शाम पांच बजकर 49 मिनट से शुरू होकर शनिवार को रात आठ बजकर 20 मिनट तक रहेगी। इस पूर्णिमा पर चंद्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होने के साथ ही पृथ्वी के निकटतम होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


Warning: Undefined variable $var_ca82733491623ed9ca5b46aa68429a45 in /home/kaizenin/worldnewsadda.com/wp-content/themes/colormag/footer.php on line 132