हरिद्वार के मामले में और सत्र की अवधि बढ़ाने में विपक्ष की रणनीति कारगर रही।

चार दिन के नौ घंटे से अधिक के सत्र में सरकार ने अपना काम संख्या बल ज्यादा होने की राहत के चलते निपटाया तो विपक्ष ने काम रोको और नियम 58 के तहत चर्चा को हथियार बनाया। हरिद्वार के मामले में और सत्र की अवधि बढ़ाने में विपक्ष की रणनीति कारगर रही। सरकार के संकटमोचक एक बार फिर संसदीय कार्यमंत्री मदन कौशिक बने लेकिन विशेषाधिकार हनन के मामलों ने उन्हें परेशान किया। 

21 दिसंबर से सत्र शुरू हुआ था तो यह माना जा रहा था कि सरकार अनुपूरक बजट को पास कराने तक सीमित है। सरकार के पास बिजनेस न के बराबर था और एक अनुपूरक और छह विधेयकों के सदन के पटल पर रखे जाने से इसकी पुष्टि भी हुई। सत्र के शुरू होने से ठीक पहले नेता सदन के कोरोना पोजिटिव होने से उत्साह और कम हुआ।

इतना होने पर भी अंगुलियों पर गिने जा सकने वाले विपक्ष ने कार्यस्थगन और नियम 58 को हथियार की तरह इस्तेमाल कर सरकार को घेरे रखा। प्रश्नकाल और शून्यकाल विपक्ष के हथियार ही माने जाते हैं और विपक्ष ने इसका उपयोग भी किया। नेता सदन जरूर तकनीकि कारणों से विपक्ष के सवालों की बौछार से बच गए लेकिन श्रम एवं वन मंत्री हरक सिंह के खाते में यह राहत नहीं आई। कर्मकार कल्याण बोर्ड हरक सिंह खुद को बचा ले गए लेकिन विपक्ष को यह कहने का मौका दे गए कि इस मामले में सरकार ही शामिल है। 
सत्र के अंतिम दिन हरिद्वार में मासूम से दरिंदगी के मामले को काम रोको प्रस्ताव के तहत उठाना भी विपक्ष केे लिए कारगर रहा। इस पर सरकार ने महत्वपूर्ण फैसला लिया। यह संसदीय कार्यमंत्री मदन कौशिक को भी फायदा दे गया। यह उनके निर्वाचन क्षेत्र का मामला भी था और कौशिक खुद भी इस मामले को लेकर गंभीर थे। 
चार दिन का सत्र 9.10 घंटे तक चला सत्र:
ऐसा बहुत कम हुआ है कि सत्र को आगे बढ़ाया गया हो। सरकार ने इस बार सत्र को एक दिन के आगे बढ़ाया-विधानसभा ने स्वीकार किया कि वर्चुअल जुड़ने के लिए नियम बनाए जांएगे। स्पीकर के मुताबिक कोरोना महामारी के कारण पहली बार यह स्थिति बनी है। कार्य संचालन नियमावली मेें इस तरह के प्रावधान नहीं हैं। सत्र के दौरान 21 वीं बार ऐसा हुआ कि सदन के भीतर प्रश्नकाल में सभी तारांकित प्रश्नों का उत्तर निर्धारित एक घंटा 20 मिनट में ही दे दिया गया।-सत्र के पहले दिन नेता सदन वर्चुवली जुड़े। 

विशेषाधिकार हनन के मामले उठे, सरकार हुई असहज:
सारी तैयारी के बीच विधानसभा उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह चौहान का विशेषाधिकार हनन का मामला सरकार को असहज कर गया। पूरन फर्त्याल के मामले में भी सरकार को सदन में जवाब देना पड़ा तो आखिरी दिन नवीन दुमका के विशेषाधिकार हनन के मामले में पीठ को कहना पड़ा कि इस तरह के मामलों को बढ़ने से रोका जाए। 

कोरोना के साए में, लेकिन कोरोना नजरअंदाज रहा:
सत्र घोषित होते ही कोरोना संक्रमण का मामला उठ खड़ा हुआ था। नेता सदन के कोरोना संक्रमित होने के बाद भी सदन के अंदर और बाहर कोरोना संक्रमण का मामला सिरे से गायब रहा। पक्ष-विपक्ष ने इस पर बात नहीं की और सदन में भी कोरोना को मात देते हुए 70 की विधानसभा में 60 से अधिक विधायकों की उपस्थिति रही। 
कुल 485 प्रश्न मिले विधानसभा को:
-तीन अल्पसूचित प्रश्नों में से दो का उत्तर दिया गया
-120 तारांकित प्रश्नों में से 21 का जवाब आया
-302 अतारांकित प्रश्न में 58 का जवाब दिया गया
– 45 प्रश्न अस्वीकार और 15 प्रश्न विचाराधीन
– 18 याचिकाएं स्वीकृत

इन नियमों की सूचनाओं पर लिया गया फैसला:
300 की 71 सूचनाओं में 54 सूचनाएं ध्यानाकर्षण के लिये
53 की 43 सूचनाओं में 2 स्वीकृत और 29 ध्यानाकर्षण के लिये
58 की 15 सूचनाओं में सभी को स्वीकृत
299 में एक सूचना प्राप्त हुई, जो कि स्वीकृत हुई

ये विधेयक हुए पारित:
-लोक सेवा (आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण) संशोधन विधेयक 
-उत्तर प्रदेश भू राजस्व अधिनियम 1901( संशोधन) विधेयक 
– उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (संशोधन) विधेयक  
-उत्तराखंड शहीद आश्रित अनुग्रह अनुदान विधेयक
– उत्तराखंड राज्य विश्वविद्यालय विधेयक
-एचएनबी चिकित्सा शिक्षा विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक

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