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बिना राजधानी का राज्य – उत्तराखंड

*बिना राजधानी का राज्य – उत्तराखंड*

गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने का आन्दोलन फिर तेज हो गया है। उत्तराखंड देश का एक मात्र ऐसा राज्य है जिसके पास अपनी राजधानी नहीं है। कितना आश्चर्य जनक है कि राज्य के लोगों को अपनी राजधानी बनाने के लिए उपयोगिता की बात करनी पड़ रही है।

*राजधानी क्यों बने*-
गैरसैंण, चन्द्र नगर को राजधानी बनाना इसलिए जरूरी है क्योकि विकास के विकेन्द्रीयकरण की शुरुवात राजधानी से ही होनी चाहिए।

सही अर्थों में यह मांग उत्तराखंड के अस्तित्व, अस्मिता और विकास के विकेन्द्रीयकरण की मांग है।

*जनमत*–
पूर्व में किए गए जनमत में 70% जनता ने गैरसैंण को राजधानी के पक्ष में समर्थन दिया है। 1994 में बनी “कौशिक समिति” ने अपनी सिफारिश में कहा था कि पहाड़ की जनता के साथ-साथ मैदान की जनता भी गैरसैंण में राजधानी बनाने के पक्ष में है।

*राजनितिक साजिश*-
2000 में बनी भाजपा की अंतरिम सरकार ने गैरसैंण की मांग को ठुकरा दिया और राजधानी चयन के लिए दीक्षित आयोग का गठन कर दिया जिसने 8 वर्षों तक कार्य किया और इसका कार्यकाल भी 11 बार सोची समझी साजिश के साथ आगे बढ़ाया गया। यह भी देश के इतिहास में एक मात्र घटना होगी जहाँ राज्य के चयन के लिए इतने वर्षों तक प्रकिया चलती रही और किसी राजधानी आयोग के निर्माण की जरूरत पड़ी।

*वर्तमान स्थिति और आवाहन*–
उत्तराखंड में विकास का डबल इंजन (एक अन्य सन्दर्भ में पहाड़ी में डबल का अर्थ धन भी होता है ) लग चुका है पर राजधानी के रूप में उसका पिस्टन गायब है। जनता पहाड़ का विकास पहाड़ के लिए चाहती है और राजधानी गैरसैंण पहाड़ के विकास की कोख है। सरकार पहाड़ कि भ्रूण हत्या ही नहीं अपितु पहाड़ी विकास की कोख को मारने पर तुली है इसलिए उत्तराखंड में हर जगह आंदोलन हो रहे है। सभी युवाओं, माताओं, बहनों, दाज्यू, दगड़ियों देश के प्रवासी और विदेशों में रहने वाले प्रवासियों से आवाहन है कि एकजुट हो जाएँ और मिलकर सरकार को उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण बनाने को मजबूर कर दें।

सबकी हिस्सेदारी सबकी जिम्मेदारी ?

और कही मंजूर नहीं,
गैरसैंण अब दूर नहीं!

समस्त गैरसैंण समर्थक (शालीमार गार्डन, साहिबाबाद)✊

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