इस जज्बे को सलाम, इच्छाशक्ति हो तो कोई भी काम नामुमकिन नहीं होता.
इस जज्बे को सलाम
नारी हमारे समाज की जननी है, जिसके बिना पूरे संसार की कल्पना तक नहीं की जा सकती। महिलाओं के बिना हमारा समाज अधूरा है। आज हमारे समाज में नारी को एक उच्च दर्जा प्राप्त है। नारी हर क्षेत्र में सबसे आगे निकल रही है भले ही वो बॉलीवुड से जुड़ा क्षेत्र हो, डॉक्टर, राजनीति का क्षेत्र हो, कोई तकनीकी रूप हो, या फिर खेल का मैदान इत्यादि हो। हर क्षेत्र में नारी की अपनी एक अलग पहचान है। हर रुप में नारी निखर कर सामने आ रही है। हमारे समाज में बहुत सी महिलाएं ऐसी हैं जिन्होंने अपनी बहादुरी अपने ज्जबे की अलग मिसाल कायम की है। तो चलिए आज हम आपको रुबरु करवाते हैं एक ऐसी ही जज्बे की कहानी से।
हमारे समाज में आपने कर्इ लड़कियों पर ऐसिड अटैक के बारे में सुना होगा। उन लड़कियों के साथ वो हुआ जिसका शायद आप अंदाजा भी नही लगा सकते। उन्ही में से एक हैं कविता बिष्ट। आज हमारे समाज का हर इंसान कविता के बारे में जानता होगा। कविता वो लड़की है जो दिल्ली जैसे शहर गई तो थी अपने सपने को पूरा करने पर मगर सिर्फ एक ‘ना’ यानी कि इंकार ने उसके सारे सपनों को जला कर रख दिया और उसकी जिंदगी बदल गई। उसके उपर हमला हुआ। वो भी ऐसा-वैसा हमला नहीं बल्कि वो हमला जो जिस्म के साथ-साथ आत्मा भी जला देता है। इस हमले के जख्म से रिसने वाले मवाद तो एक समय के बाद बंद हो जाते हैं मगर इसका दर्द पूरी जिंदगी रिसता रहता है।
जिंदगी में अगर हौसला हो तो कोई भी काम मुश्किल नही होता, बस जरूरत लगन और मेहनत की है, इसकी मिसाल उत्तराखण्ड की ब्रांड एम्बेसडर और एसिड अटैक पीड़िता कविता बिष्ट है जो दिव्यांग होते हुए भी खुद अपने पैरों पर खड़े होकर दूसरो के लिए काम कर रही है।
ज़िन्दगी कही से भी शुरू की जा सकती है , बस जरूरत हौसले की है, इसका जीता जागता उदाहरण कविता बिष्ट हैं, कविता आज से करीब 10 साल पहले एसिड अटैक का शिकार हुई थी, उस समय कविता अपने घर का खर्च उठाने के लिए दिल्ली में एक निजी कंपनी में काम करती थी, कविता के मुताबिक इस घटना के बाद उनकी आँखों की रोशनी तो चली ही गयी, और ऐसा लगा की मानो ज़िंदगी भी खत्म हो गयी हो, लेकिन कविता ने हार नहीं मानी औऱ हिम्मत कर दुबारा उठी और ज़िन्दगी को एक नई शुरुआत दी, हालांकि इस दौरान समाज ने कविता को कई तरह से ताने दिए लेकिन दिव्यांग कविता ने कभी पीछे मुड़कर नही देखा, आज कविता अपना एक पेइंग होस्टल चला रही हैं जिसका सारा काम वह खुद करती हैं, यही नही कविता दिव्यांग बच्चो को रोजगार परक प्रशिक्षण देती हैं,जिससे बच्चे दिव्यांग होने के बावजूद अपने ज़िन्दगी सवार सकते है,
कविता दिव्यांग होने के बावजूद व्हाट्सएप, फ़ेसबुक, ट्विटर सब कुछ आसानी से ऑपरेट कर लेती है, उन्हें संगीत का बहुत शौक है, वह अपना ज्यादातर समय पियानो और हारमोनियम पर गुजारती हैं, कविता के मुताबिक वह विश्व महिला दिवस के अवसर पर महिलाओं को यह संदेश देना चाहती हैं की वे किसी भी परिस्थिति में हिम्मत ना हारें, आगे बढे,
ताउम्र दूसरों के लिए जीने की जज्बा और कभी हालात से न हारने की जिद ने कविता को आज उस मुकाम पर ला खड़ा किया है जहां पहुंचना हर किसी की बात नहीं होती. अपने हौसले से कविता ने ये साबित कर दिया है कि अगर दिल में कुछ करने की इच्छा हो तो कोई भी काम नामुमकिन नहीं होता.