अब पूरा मामला जनता की अदालत में है और उसी का फैसला निर्णायक होगा।
आखिरकार चुनाव आयोग ने गुजरात के लिए विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी। राज्य की 182 सीटों के लिए देा चरणों में 9 और 14 दिसंबर को वोट डाले जायेंगे, जबकि मतगणना 18 दिसंबर को होगी। आयोग पहले ही कह चुका था कि गुजरात में भी मतगणना हिमाचल प्रदेश के साथ ही होगी। ऐसे में शायद चुनाव कार्यक्रम की घोषणा में और विलंब की गुंजाइश भी नहीं रह गयी थी। हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के इतने दिनों बाद गुजरात का चुनाव कार्यक्रम घोषित करने के स्वाभाविक ही चुनाव आयोग के अपने तर्क होंगे, लेकिन इस बीच उठे सवालों-संदेहों से आयोग की साख बढ़ी तो हरगिज नहीं है।
कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने सत्तारूढ़ भाजपा को लोक लुभावन घोषणाओं के लिए समय देने के मकसद से ही चुनाव कार्यक्रम की घोषणा में विलंब के आरोप लगाये। कांग्रेस तो इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय भी गयी। बहरहाल अब पूरा मामला जनता की अदालत में है और उसी का फैसला निर्णायक होगा। गुजरात विधानसभा चुनावों का विशेष राजनीतिक महत्व इसलिए भी है, क्योंकि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य है। भाजपा वहां दो दशक से भी ज्यादा समय से सत्ता में है। विकास के गुजरात मॉडल का ही प्रचार कर मोदी और भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनाव में अच्छे दिन आने के सपने दिखाये थे।
मोदी के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद भाजपा को गुजरात में दो मुख्यमंत्री बदलने पड़े। मोदी वहां तीन कार्यकाल मुख्यमंत्री रहे। वह आनंदीबेन को कमान सौंप कर आये थे, पर अब विजय रूपानी मुख्यमंत्री हैं। भाजपा न भी माने, पर वास्तविकता यही है कि आज का गुजरात मोदी का गुजरात नहीं है। पाटीदार आंदोलन से ले कर गोरक्षा के नाम पर अल्पसंख्यक-दलित उत्पीडऩ तक कई घटनाओं से गुजरात का जनमानस प्रभावित हुआ है। कहना नहीं होगा कि इस बदलाव ने कांग्रेस समेत विपक्ष का प्रोत्साहित भी किया है। हालांकि शंकर सिंह वाघेला द्वारा कांग्रेस छोड़ कर अलग संगठन बनाने को कांग्रेस के लिए भाजपा प्रायोजित झटके के रूप में भी देखा गया, लेकिन राज्यसभा चुनाव में अहमद पटेल की जीत ने विपक्षी मनोबल को मानो आसमान पर पहुंचा दिया।
बेशक राज्यसभा की एक सीट और राज्य विधानसभा की 182 सीटों के चुनाव में भारी अंतर है, लेकिन पहली बार विपक्ष को लग रहा है कि वह मोदी को उनके घर में ही घेर सकता है। अल्पेश ठाकोर के कांग्रेस में शामिल हो जाने के बाद हादिक पटेल की भी राहुल गांधी से बढ़ती नजदीकियां भाजपा के लिए शुभ संकेत तो हरगिज नहीं हैं। एक साल में मोदी के 15 गुजरात दौरे बताते हैं कि भाजपा इस बार चुनावों को हल्के में लेने के मूड में नहीं है। स्वाभाविक ही है कि विधानसभा चुनाव होते हुए भी गुजरात पर राष्ट्रीय ही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की भी निगाहें लगी रहेंगी।