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देवभूमि उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों से जंबू, चोरू, कपूर कचरी, कुटकी, कूठ, जटामांसी जैसी औषधीय जड़ी बूटियां तेजी से विलुप्त हो रही हैं।

राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत वैज्ञानिकों के शोध में यह खुलासा हुआ है। 

औषधीय वनस्पतियों और जड़ी-बूटियों को संरक्षित करने के लिए गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान के वनस्पति विज्ञानियों की टीम आगे आई है। वनस्पति विज्ञानियों की अगुवाई में पिथौरागढ़ के चौदास घाटी में संरक्षण को लेकर योजना लागू की गई है। इसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं।
राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत संचालित इस परियोजना में गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान कोसी के वनस्पति विज्ञानियों की टीम पिथौरागढ़ के चौदास घाटी ने परियोजना पर काम कर रही है।

चौदास घाटी के 11 गांवों के 172 से अधिक किसानों को इन औषधीय जड़ी बूटियों के संरक्षण के प्रति जागरूक करने के साथ ही उन्हें आजीविका के साथ जोड़ने को लेकर भी पहल की गई है। औषधीय वनस्पतियों के संरक्षण में वन विभाग और कई हर्बल कंपनियों की भी मदद ली जा रही है।
 
पाई जाती हैं कई औषधीय वनस्पतियां :
वनस्पति विज्ञानियों के मुताबिक जंबू, चोरू, तेजपता, कपूर काचरी, कुटकी, कूठ और जटामासी जैसी वनस्पतियां समुद्र तल से 900 मीटर से लेकर 2800 मीटर तक की ऊंचाई वाले स्थानों में पाई जाती हैं। प्रदेश के सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के चौदास घाटी का इलाका इन औषधियों के लिए उपयुक्त है। 

हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाने वाली औषधीय जड़ी बूटियों के संरक्षण का प्रयास किया जा रहा है। इसमें गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान के वनस्पति विज्ञानियों की मदद ली जा रही है। पिथौरागढ़ जिले में चौदास घाटी में 11 गांव के 172 से अधिक किसानों को संरक्षण से जोड़ा गया है। 
-किरीट कुमार, नोडल अधिकारी,  राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन।

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