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बापू की जिंदगी से जुड़े कुछ अहम् किरदार

आज चंपारण सत्याग्रह के 100 साल पुरे हो जायेंगे ,इस सत्याग्रह मैं तीन स्त्रियों की गवाही ने बापू के जीवन दरसन को बहुत्र गहरे तक प्रभाहित किया , एक ही परिवार की एन तीन ओरतों की गरीबी ने उनेह इतना उद्धेलित किया कि उन्होंने ता उम्र कम कपड़ों मैं गुजर-बसर का संकल्प लिया, चम्पारण का सत्याग्रह केवल नील बोने वाले किसानों पर अंग्रेजों के अत्याचार से उपजे संत्रास की कहानी नहीं हैं . यह तो भारतीय जनमानस मैं ओज भरने का उत्सव था, इसके प्रणेता गाँधी बने.

पूरा देश चंपारण सत्याग्रह के 100 साल पुरे होने पर उत्सव धर्मिता के आन्दातिरेक मैं एस वक़्त डूबा हुआ हैं, इस सत्याग्रह ने बापू का आत्मविश्वास बाधा दिया था, की आजादी का मुकाम ऐसे ही सघर्सों से गुजरकर मिलेगा , जब गाँधी चंपारण आये थे, चंपारण का किसान वर्ग अनपढ़  था यहाँ कही भी कांग्रेस का नाम नही था, और न ही यहाँ के लोंगों को देश की राजनीतिक परिस्थिति का भान था, बापू ने स्वयं लिखा,”यहाँ के लोग चंपारण के बहार की दुनियां को जानते न थे इतने पर भी उनका और मेरा मिलन पुराने मित्रों जैसा लगा, अतएव यह कहने मैं अतिश्योक्ति नहीं बल्कि सचाई हैं की इसके कारन मैंने वहां ईश्वर का, अहिंसा का और सत्य का साक्षात्कार किया, जब मैं इस साक्षात्कार के अपने अधिकार की जांच करता हू तो मुझे लोगों के प्रति अपने प्रेम के सिवाय और कुछ नही मिलता, इस प्रेम का अर्थ, प्रेम अथवा अहिंसा के संबंध मैं मेरी अविचल श्रद्धा,

लम्बे समय से अत्याचार सह रहे नील की खेती करने वाले किसानों मैं कितना साहस था ये तो खुद गाँधी जी भी नहीं जानते थे जब चंपारण मैं गाँधी जी हाथी पर सवार होकर उस किसान के घर जा रहे थे, जिस पर निलहा साहबों ने अत्याचार किया था,तो वो रस्ते मैं ही उनेह पुलिस सुपरीटेंडेंट का बुलावा आ गया था, रस्ते मैं चंर्हिया गाँव के पास उन्हें चम्पारण से चले जाने का नोटिस दिया गया था | यह नोटिस वहां के तात्कालीन जिला मजिस्ट्रेट डब्लू. बी. हकाक ने जारी की थी | इससे पूर्व वे मुजफ्फरपुर में ११ अप्रैल को वहां के कमिश्नर मिस्टर एल. एफ.  मौंर्शेंड से मिल चुके थे | मौर्शेड से पूर्व बापू बिहार प्लांटर्स एसोसिएसन के मिनिस्टर जे.एम.विल्सन से भी मिल चुके थे,विल्सन और कश्मीर दोनों ने चंपारण मैं नील के किसानों के मामले दखल देने से उन्हें मना किया था,

दरअसल चंपारण मैं तीन कठिया प्रथा लागू थी और किसान इससे ही पीड़ित थे, 1860 से ही किसानों को प्रति बीघा पहले पांच और बाद मैं तीन कट्ठा नील की खेती करनी अनिवार्य थी नील की खेती से किसानों को कोई फायदा नही था उन्हें उसका समुचित मूल्य नही मिलता था,

 

तीन ओरतों की अनोखी गवाही :

चंपारण सत्याग्रह मैं अनेको लोग सामिल थे साथ चले लेकिन गाँधी का यह अभियान सत्याग्रह तक सीमित नही रहा, सत्याग्रह के दौरान ही गाँधी जी किसानों पर हो रहे अत्याचार की गवाही ले रहे थे. एक परिवार की तीन महिलाओ को उनके समक्ष अपनी बात कहने के लिए आना था लेकिन तीनो एक साथ नहीं आ सकती थी क्योंकि उनके घर में सिर्फ एक ही साबुत सड़ी थी जिसे पहन कर तीनो बहार आ सकते थे. एक महिला गवाही देकर जाती थी फिर उसकी साड़ी पहनकर दूसरी और तीसरी महिला पहुची थी बापू को इस दुःख दैन्य ने अन्दर तक उद्धेलित किया . उन्होनो यहाँ दो प्रतिज्ञा ली पहला की चंपारण के किसानों क०ओ तीन कठिया प्रथा से मुक्ति दिलाएंगे और दूसरा वे भी ताउम्र कम कपड़ो में अपना.

 

 

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