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मौजूदा समय में उत्तराखंड में कितने गरीब हैं, यह संख्या जल्द सामने आएगी।

राज्य में गरीबों की गिनती के लिए इसी हफ्ते से सर्वेक्षण होने जा रहा है। अर्थ एवं संख्या निदेशालय ने सर्वे की तैयारी कर ली है। राज्य की योजनाओं के लिहाज से इस सर्वेक्षण का खास महत्व माना जा रहा है। 

निदेशालय के संयुक्त निदेशक डॉ. मनोज कुमार पंत के मुताबिक, अब तक हुए गरीबी के तमाम सर्वे से यह अलग होगा। संयुक्त राष्ट्र विकास का कार्यक्रम (यूएनडीपी) के मानकों के आधार पर यह सर्वे होगा। सर्वेक्षण में गरीबी की रेखा तय करने के लिए ग्रामीण गरीबों के लिए आहार मानक 2400 कैलोरी व शहरी गरीबों के लिए 2100 कैलोरी प्रतिदिन रखा जाएगा।
अभी तक गरीबी के सर्वे केवल आहार मानकों पर हुए हैं, लेकिन इस सर्वे में उपभोग के साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य, जीवन निर्वाह, पानी, बिजली और शौचालय की उपलब्धता भी मानकों की श्रेणी में होंगे। बता दें कि वर्ष 2011 के बाद उत्तराखंड को लेकर कोई प्रमाणिक सर्वे नहीं हुआ है। करीब नौ वर्षों दौरान जो आंकड़े सामने आए, उन्हें लेकर भी भ्रम की स्थिति रही। अलग-अलग सर्वेक्षण व आंकलनों में प्रदेश में गरीबी के अलग-अलग आंकड़े सामने आए।  

2011-12 के सर्वे में 16.9 फीसदी गरीब:
राष्ट्रीय प्रतिदर्श संगठन (एनएसएओ) के 2011-12 के सर्वे में उत्तराखंड में गरीबी की दर 16.9 प्रतिशत आंकी गई थी। वर्ष 2004-05 में 32.7 प्रतिशत गरीबी थी। उत्तराखंड मानव विकास सर्वेक्षण रिपोर्ट-2017 के मुताबिक, प्रदेश में 15.6 प्रतिशत गरीब हैं। वर्ष 2014 में भी लखनऊ के गिरि इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज (जीआईडीएस) के साथ मिलकर उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों में गरीबी के आंकड़े सामने आए थे। इस सर्वे के मुताबिक, ग्रामीण इलाकों में गरीबी 17.9 और शहरी क्षेत्र में 11.1 प्रतिशत आंकी गई थी।

चंपावत सबसे गरीब जिला, पहाड़ी जिले बदतर:
चंपावत-35.2, अल्मोड़ा 30.7, चमोली 27.4, ऊधमसिंह नगर 18.7, रुद्रप्रयाग में 18.3, हरिद्वार 15.3, पौड़ी गढ़वाल 14.8, नैनीताल में 13.7, टिहरी गढ़वाल 13, पिथौरागढ़ 13, बागेश्वर 11.8, उत्तरकाशी 9.9 देहरादून जिले में 7.1 प्रतिशत गरीबी है। 

मैदान में पहाड़ से कम गरीब:
प्रदेश में पहाड़ में गरीबी का प्रतिशत 17.9 है तो मैदान में 13.6 प्रतिशत है। पहाड़ के ग्रामीण इलाकों में गरीबी 19.6 प्रतिशत तो शहरी क्षेत्र में 11.3 प्रतिशत है। वहीं मैदान के ग्रामीण इलाकों में गरीबी 15.7 प्रतिशत तो शहरी क्षेत्र में 11.1 प्रतिशत है।

वर्ष 2011 के बाद से गरीबी को लेकर कोई प्रमाणिक सर्वे नहीं हुआ है। इस सप्ताह से निदेशालय का सर्वे शुरू हो जाएगा। सर्वे के आंकड़े योजना का स्वरूप तय करने में सहायक होंगे। अभी पुराने आंकड़ों के आधार पर योजनाएं तैयार हो रही हैं। नए आंकड़े आएंगे तो उस लिहाज सरकार अपना फोकस एरिया तय कर सकेगी।
– डॉ. मनोज कुमार पंत, संयुक्त निदेशक, अर्थ एवं संख्या निदेशालय 

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