गढ़वाली गायक अमित बडोनी ‘मस्तु’ ने गाया उपनल कर्मियों की पीड़ा पर एक सुंदर गीत।
प्रदेश में उपनल के माध्यम से कार्यरत कर्मचारियों की आवाज बनना पसंद किया लोक गायक अमित बडोनी ने। लोक गायक अमित बडोनी बताते हैं कि मैं अभी तक लगभग 35 गीत लिख और गा चुका हूं।
गाने के बोल हैं टितरलु ह्वेगी यों उपनल कर्मरियों कु न यखक न वखक रेगिन (न घर के न बोंण के) रेगिन अब त चारु फाँसी कु ही रेगि,आगे बताते हैं कि उनकी इच्छा है कि प्रदेश का हर नौजवान अपनी मातृभूमि के गीतों को जाने और उन्हें इस बात की पहचान हो कि किस क्षेत्र में कौन सा लोकगीत गाया जाता है
उत्तराखंड से मन की बात, और नेता जी हमारा अब विधायक बणिगेन गीत को सुनते ही राज्य के हर महिला, युवा, बुजुर्ग और छात्रों की मुठ्ठियां तन गई की आखिरकार उत्तराखंड में हमारे साथ ये हो क्या रहा है, आपको बता दें इससे पहले भी सरकार और नेताओं पर समय समय पर गढ़वाली गायकों ने आंदोलन के कई गीत लिखे हैं ।और बड़े प्रतिरोध के आंदोलन भी खड़े हुवे हैं ।
उपनल कर्मियों की जूझती जिंदगी ने मुझे गाना गाने को मजबूर किया। सोशियल मीडिया में देखो तो उपनल अखबार खोलो तो फ्रन्ट पेज खबर , दौड़ा-दौड़ा कर पीटा हजारों उपनल कर्मचारियों को पुलिस ने,
समान कार्य समान वेतन के लिये भरी उपनल कर्मियों ने हुंकार, न्यायालय के आदेश का किया उपनल संघ ने समान, उत्तराखंड में समय समय पर सरकारें बदलती रही नहीं बदली तो उपनल के माध्यम से लगे विभिन्न विभागों में लगे कर्मचारियों की किस्मत जो वषों से धरने प्रदर्शन के माध्यम से कभी कांग्रेस तो कभी बीजीपी की सरकार को जगाने की कोशिश करते-करते कई उपनल के माध्यम से नोकरी करने वालों को अब अपने बुढ़ापे को देखकर चिन्ता हो रही है कि जवानी कट गई लेकिन हम आज भी हम खाली हाथ हैं।मुझे आज भी वो दिन याद है, जब मैंने अपना पहला गीत लिखा था। मेरे दिल में बेचैनी थी और आंखों में आंसू। ये बात साझा की लोकगायक अमित बडोनी मस्तू ने’ ई मीडिया से।