बड़े घोटाले का खुलासा, उत्तराखंड में फर्जी डिग्री से नौकरी कर रहे है 5000 शिक्षक
प्रदेश के शासकीय और अशासकीय स्कूलों में बड़ी संख्या में ऐसे शिक्षक अध्यापन कार्य कर रहे हैं, जिनके शैक्षिक प्रमाण पर या तो पूरी तरह फर्जी अथवा उत्तराखंड में मान्य नहीं हैं। हाल ही फर्जी शैक्षणिक दस्तावेजों के आधार पर नौकरी कर रहे 41 टीचर पकड़े जाने पर अमर उजाला ने गहराई से पड़ताल की तो संकेत मिले हैं कि शासकीय और अशासकीय स्कूलों दोनों में ऐसे टीचरों की संख्या पांच हजार तक हो सकती है। हाल ही एक आरटीआई एक्टिविस्ट ने शिक्षा विभाग को 217 टीचरों के नामों की सूची सौंपते हुए इनके शैक्षिक प्रमाण पत्रों की जांच की मांग की है।
खबर है कि शिक्षा विभाग में अधिकारियों-कर्मचारियों का एक कॉकस है, जो ऐसे लोगों की नौकरी लगवाने के गोरखधंधे में लंबे समय से लिप्त है। राज्य के कई जिलों में फर्जी शैक्षणिक दस्तावेज पर नौकरी कर रहे टीचरों के पकड़े जाने पर शिक्षा विभाग के किसी जिम्मेदार अधिकारी-कर्मचारी के खिलाफ कार्रवाई न होना इस संदेह को बल देता है। अब तक सामने आए मामलों में आरोपी टीचरों ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान और बिहार आदि राज्यों से बनवाए गए फर्जी प्रमाण पत्र हासिल किये थे। कई ऐसे टीचर भी हैं, जो भारतीय शिक्षा परिषद, लखनऊ, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, महिला ग्राम विद्यापीठ प्रयाग(उप्र), जैसे कई गैरमान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थानों की डिग्री पर नौकरी कर रहे हैं।
अमर उजाला का मानना है कि अगर शिक्षकों के दस्तावेजों की प्रदेश स्तर पर व्यापक जांच हो तो न केवल शिक्षा विभाग में वर्षों से चल रहे संगठित गिरोह का पर्दाफाश हो सकता है, बल्कि फर्जी डिग्री पर छात्रों का भविष्य चौपट कर रहे टीचरों से भी शिक्षा विभाग को निजात मिलेगी। प्रदेश में 12511 प्राथमिक, 2957 उच्च प्राथमिक और 1238 इंटरमीडिएट कालेज हैं, इन स्कूलों में 71486 टीचर हैं, वहीं अशासकीय विद्यालयों में लगभग 20 हजार टीचर हैं। बेसिक शिक्षा में नियुक्तियां मेरिट के आधार पर होती है, अभ्यर्थी अपने शैक्षिक प्रमाण पत्र दिखाते हैं और इसके आधार पर नियुक्तियां पा जाते हैं, उनके प्रमाण पत्रों का सत्यापन नहीं होता न ही लिखित परीक्षा होती है। वहीं अशासकीय स्कूलों में शिक्षा विभाग और स्कूल प्रबंधन की सांठगांठ से नियुक्तियां होती रही हैं। दून निवासी आरटीआई एक्टिविस्ट रहमत अली ने शिक्षा महानिदेशक विद्यालयी शिक्षा को लगभग 217 टीचरों के नामों की सूची सौंपते हुए इनके शैक्षिक प्रमाण पत्रों की जांच की मांग की।
आरोप है कि कई टीचर फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर नियुक्ति पा चुके हैं। जांच के साथ ही इन टीचरों के शैक्षिक प्रमाण पत्र मांगे गए, लेकिन विभाग की ओर से मामले की अनदेखी की गई। मामला सूचना आयोग पहुंचा तो आयोग ने इसे गंभीर प्रकरण बताते हुए शिक्षा निदेशालय को प्रकरण की जांच के निर्देश दिए। आयोग के निर्देश के बाद अब विभाग हरकत में तो आया है, मगर अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं नजर आई। पिछले दिनों फर्जी शैक्षणिक दस्तावेज पर काम करने के जितने भी मामले पकड़े गए हैं, उसमें केवल टीचरों के खिलाफ कार्रवाई हई है। विभाग के ही लोग सवाल उठाते हैं कि क्या विभाग के लोगों के मिलीभगत के बिना ऐसा संभव है ? वे ही जवाब देते हैं कि शिक्षा विभाग में कॉकस सक्रिय है, चूंकि यह कॉकस सत्ता मैं बैठे और अन्य प्रभावशाली लोगों के परिजनों, परिचितों को फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर टीचर बनवा देता है, लिहाजा उनका कुछ नहीं बिगड़ता। ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई हो तभी यह फर्जीवाड़ा रुकेगा।
फर्जी दस्तावेज पर नौकरी करने के आरोप में अब तक पकड़े गए कुछ टीचर तो पिछले 19 साल से बच्चों को पढ़ा रहा थे। हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर जनपद जांच में चिड़ियापुर जिला हरिद्वार के छिद्दू सिंह के इक्का दुक्का नहीं बल्कि समस्त शैक्षिक प्रमाण पत्र फर्जी मिले हैं। रसूलपुरगोट बहादराबाद के विजेंद्र सिंह, प्राथमिक विद्यालय चमारिया बहादराबाद के गीताराम,राजकीय प्राथमिक विद्यालय टाटवाल के चंद्रपाल सिंह, रायसी लक्सर के यतेंद्र सिंह, प्राथमिक विद्यालय मंगोलपुरा के ऋषिपाल सहित 26 टीचरों के छह फरवरी 2016 से अब तक की जांच में बीटीसी के प्रमाण पत्र फर्जी मिले हैं। इसके अलावा सरकारी माध्यमिक विद्यालयों एवं अशासकीय विद्यालयों में हुई नियुक्तियों में भी फर्जीवाड़ा सामने आया है।
अशासकीय स्कूलों में कई टीचरों की फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर नियुक्तियां कर दी गई हैं, जांच में देहरादून में स्थित इस स्कूल के दो टीचरों के बिहार से प्रथम श्रेणी में पास प्रमाण पत्र फर्जी निकले। विभागीय सूत्रों की माने तो हजारों की संख्या में टीचर फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर नियुक्तियां पाएं हुए हैं, लेकिन विभाग की ओर से केवल उन टीचरों के प्रमाण पत्रों की जांच होती है जिनकी विभाग को शिकायत मिलती है। इसी तरह ऊधमसिंह नगर में 11 टीचरों के शैक्षिक प्रमाण पत्र जांच में फर्जी मिले हैं, मुख्य शिक्षा अधिकारी पीएनसिंह के मुताबिक इनके प्रमाण पत्र राज्यगठन से पूर्व के हैं, इन सभी 11टीचरों को सस्पेंड कर दिया गया है। इसके अलावा कुछ अन्य टीचरों की भी शिकायतें मिली हैं। मामले की गोपनीय जांच की जा रही है। जांच पूरी होने पर इन टीचरों के खिलाफ भी कार्रवाई होगी।
इसके लिए टीचर ही नहीं पूरा सिस्टम दोषी है, विभाग की मिलीभगत के बगैर यह संभव नहीं है, हाल में एक जनपद में इतने टीचर फर्जी मिले हैं, इससे अन्य जनपदों में भी इस तरह के फर्जी टीचर हो सकते हैं, विभाग को पूरे प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच करनी चाहिए।
–दिग्वजय चौहान, प्रदेश महामंत्री प्राथमिक शिक्षक संघ
ऊधमसिंह नगर और हरिद्वार में अधिकतर फर्जीवाडे के मामले पकड़ में आए हैं, जिला शिक्षा अधिकारी के स्तर पर इसकी जांच की जा रही है, कई टीचरों की सेवाएं समाप्त कर दी गई हैं वही कुछ सस्पेंड चल रहे हैं, किसी आरटीआई कार्यकर्ता ने विभाग को फर्जी शैक्षिक प्रमाण पत्रों के आधार पर टीचरों के सेवा में होने की शिकायत की थी। शिकायत मिलने पर हम जांच करवाएंगे और ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई.